Dalits are more devoted Hindus than the upper castes.

"Dalits are more devoted Hindus than the upper castes"

एक इंटरव्यू में विदेशी पत्रकार को उपरोक्त जवाब देने वाले, बिहार के पटना लॉ कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और जाने माने “दलित विचारक” श्री गुरु प्रकाश जी का ये मानना है और ये कहना है कि वर्तमान में कुछ स्वार्थपूर्ण और द्वेषपूर्ण उद्देश्य वाले लोग अपनी द्वेषपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिये हिन्दू समाज के फॉल्टलाइन को मैनिपुलेट कर युवा दलितों को गुमराह कर रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसे स्वार्थपूर्ण लोगों का उद्देश्य हिन्दू सामाजिक समरसता को, भारतीयता को और भारत को आघात पहुंचाना है। हिंदुओं की सामाजिक समरसता के उद्दाहरण स्वरूप श्री गुरु प्रकाश जी, ऐतिहासिक भारत से संत कबीर दास और संत श्री रविदास जी के उद्दाहरण प्रस्तुत करते हैं और संत कबीर का दोहा

“कबिरा कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम। गले राम की जेवरी, जित खैंचे तित जाऊँ”।

का वर्णन करते हैं। और संत श्री रविदास की

“अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी,
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी” का उल्लेख करते हैं।

और उन्होंने आधुनिक भारत से श्री भोलाराम शास्त्री, बाबू श्री जगजीवन राम और आदरणीय श्री बाबा साहेब अंबेडकर का उद्दाहरण भी प्रस्तुत किया। श्री गुरु प्रकाश जी ने सवाल किया कि “श्री अम्बेडकर के हिन्दू धर्म को छोड़ कर बौद्ध धर्म को अपनाया भी, तो क्यों ऐसे धर्म को चुना जो भारतीयता से संबंधित और भारतीयता के निकटतम था? जबकि उनको प्रलोभन ईसाई और इस्लाम से भी थे ? उनका झुकाव ईसाई या इस्लाम की तरफ क्यों नहीं हुआ?

श्री गुरु प्रकाश जी का मानना है कि आज “जय भीम, जय मीम” की दुहाई देने वालों को पहले श्री जोगेंद्र नाथ मंडल जी को पढ़ना चाहिये; बाबा साहेब अंबेडकर का गूढ़ अध्ययन करना चाहिये।

निष्पक्ष रूप से अवलोकन करने पर श्री गुरु प्रकाश जी का विचार तथ्यात्मक दृष्टिगोचर होता है क्योंकि वास्तविकता ये है की वामन मेश्राम जैसे स्वयंभू बौद्ध नेता वास्तविकता में एक क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं और दूसरे उदाहरण स्वरूप चंद्रशेखर आज़ाद रावण जैसे स्वयम्भू दलित नेता एक ऐसे नेता हैं जिनकी पार्टी भी उन्हीं के नाम से है और पार्ट अध्यक्ष भी वो स्वयं हैं। इसके अतिरिक्त, भारत विरोधी गतिविधियों में भी हमेशा उनकी संलिप्तता होती है।

युगों-युगों से विभिन्न कारणों से शोषित हुए लोगों को मुख्यधारा में लाने हेतु श्री गुरु प्रकाश जी “आरक्षण” की जरूरत और महत्व का समर्थन तो करते हैं पर साथ ही वो “नो मोर फोर” के फॉर्मूला पर चलने हेतु दलितों को सुझाव भी देते हैं। ("नो मोर फोर"- अर्थात, अगर आपके परिवार से तीन “वैयक्तिक” आरक्षण का लाभ ले चुके हों तो चौथे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये, बेहतर वो स्वयं “आरक्षण” का त्याग कर दे)

श्री गुरु प्रकाश का मानना है कि वर्तमान दलित राजनीतिज्ञों की परिवारवाद की राजनीति दलितों के वास्तविक उत्थान में बहुत बड़ी बाधक है।

ऐसे श्री गुरु प्रकाश जी का, “बंटे हिन्दू समाज का आईना है दलित” विषय पर “द जर्नलिस्ट अड्डा” पर अनिल शारदा को दिये गये इंटरव्यू का अंश नीचे प्रस्तुत है।


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