Highlight
- वैज्ञानिकों ने पाया है कि हवन के धुएँ में anti-bacterial, anti-fungal और anti-viral गुण होते हैं।
- पंचगव्य में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के अपार गुण होते हैं।
- अरोमाथेरेपी के जानकार बियोलॉजिस्ट भी हवन पदति का अनुमोदन करते हैं।
- सामन्य मानसिक रोग जैसे डिप्रेशन, अनिद्रा या फिर गंभीर मनोरोग के इलाज में भी हवन विशेष लाभदायक है।
- अग्निहोत्री का राख, कृषि के लिये लाभदायक है।
- कोरोना से बचओ के उपायों में हवन को शामिल किया जा सकता है।
- औषधियुक्त हवन के धुयें से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है और इससे कुछ नुकसान नहीं होता जबकि दवाओं का कुछ न कुछ दुष्प्रभाव भी हो सक्ता है।
चंद दिनों पहले मैं टी.वी पर अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान की डॉक्टर तनुजा नेसरी जी का इंटरव्यू देख रहा था। जिसमे वो कोरोना से बचाव के आयुर्वेदिक तरीकों के अंतर्गत हवन पर भी चर्चा
कर रही थी। चूंकि “हवन के प्रयोग” के कार्य क्षेत्र में मेरा तीन साल का लंबा अनुभव
रहा है इस लिये विचार आया कि मैं अपनी जनकारी लोगों से साझा करूँ।
हिन्दू धार्मिक परंपराओं में
देव पूजा, उपासना, जप, ध्यान, स्नान से हर सुख को पाने के उपाय बताए गये हैं। ऐसे सुखों और खुशियों का आनंद दोगुना तब हो
जाता है, जब सुख और आनंद व्यक्ति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें समाज या
प्रकृति भी शामिल हो जाये।
शास्त्रों में ऐसा ही एक
धार्मिक कर्म बताया गया है - हवन।हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि, “हवन/अग्निहोत्री” का शुभ प्रभाव न केवल कर्ता पर होता है बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है। ग्रंथों में अनेक
तरह के यज्ञ और हवन बताये गये हैं। यज्ञ/हवन
/ अग्निहोत्री को सनातन संस्कृति में बहुत
अधिक महत्व दिया गया है। आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साथ ये शारीरिक और मानसिक लाभ
भी पहुँचाते हैं।
हवन के दौरान हम “हवन सामग्री”,जिसमें हवन समिधा(हवन में उपयोग होने वाली लकड़ी) और पंचगव्य(गाय द्वारा प्राप्त पांच वस्तुयें: दूध, मूत्र, गोबर, घी और दही)[1]प्रयुक्त होता है, का मंत्रों के साथ आहुति देते हैं।हवन
समिधा मुख्यतः भिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ हुआ करती हैं। हवन सामग्री
में चार प्रकार के तत्व प्रयुक्त होते हैं।(१)
सुगन्धित : जिसमें केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री, छड़ीला, कपूर, कचरी, बालछड़, पानड़ी, आदिवस्तुयें
होती हैं (२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, कलातिल, चावल, शहद, नारियल,जैसी वस्तुयें (३) मिष्ट
– शक्कर, छूहारा, दाख आदि वस्तुयें (४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली, ब्राह्मी, तुलसी, अगर, तगर, इंद्रा, जव, आमला, मालकांगनी, हरताल, तेजपत्र, प्रियंगु, केसर, सफ़ेद, चन्दन, जटामांसी
आदि वस्तुयें होती हैं। उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुयें हवन में प्रयोग होनी
चाहिये।
अब तो
विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र,
प्रज्जवलित होने वाली अग्नि और धुयें से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता
है।यज्ञ-हवन को अवैज्ञानिक
बताकर सिरे से खारिज कर देने वालों को अब स्वस्थ जीवन और प्रदूषणमुक्त
वातावरण के लिये यज्ञ और हवन की शरण में जाना ही पड़ेगा।
लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति
अनुसंधान संस्थान (एन.बी.आर.आई) के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में काफी काम किया है[2],[3] ।हरिद्वार के गुरुकुल काँगड़ी के सहयोग से उन्होंने हरिद्वार
में हवन कार्य की सहायता से यह निष्कर्ष जुटाने में कामयाबी पाई है कि वायुमंडल
में व्याप्त 94 फीसदी जीवाणुओं को सिर्फ हवन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। इतना ही
नहीं एक बार हवन करने के बाद तीस दिन तक उसका असर रहता है।यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी
के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है।
एन.बी.आर.आई के वैज्ञानिक चंद्रशेखर नौटियाल कहते हैं, 'हवन के
माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। करीब दस हजार साल
पहले से भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी हवन की परंपरा चली आ रही है जिसके
माध्यम से वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सकता है।'
एन.बी.आर.आई के दो अन्य वैज्ञानिक पुनीत सिंह चौहान और यशवंत लक्ष्मण
नेने ने भी डॉ. नौटियाल के साथ हवन के स्वास्थ्य और वातावरण पर प्रभाव पर शोध किया
है। इनके लंबे-चौड़े शोध प्रबंध का छह पेज का सार यह बताता है कि हवन में तमाम
औषधीय वनस्पतियों को डालकर बंद कमरे में हवन करने से 94 फीसदी जीवाणु मर जाते हैं।
NDND माइक्रोबायलॉजी के
वैज्ञानिक डॉ. मोनकर ने हवन के प्रभावों के अध्ययन के बाद यह साबित करने में
कामयाबी पाई है कि हवन के बाद जो वातावरण निर्मित होता है उसमें विषैले जीवाणु
बहुगुणित नहीं हो पाते और बेअसर हो जाते हैं। एसटाईपी नामक प्राणघातक बैक्टीरिया
हवन के बाद के वातावरण में सक्रिय ही नहीं रह पाता [3]। वैज्ञानिकों ने पाया है कि हवन के धुयें में एन्टी-फंगल [4]और एन्टी-बैक्टीरियल[5],[6] गुण पाये जाते
हैं।एन्टी-वायरल गुणों के लिये हवन सामग्री में
दूसरे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के साथ हम
“नीम के छाल”[10] को सम्मिलित कर सकते हैं। पंचगव्य में “प्रतिरोधक क्षमता वर्धक” गुण
पाये जाते हैं[11]। दिल्ली में रक्षा
मंत्रालय के शोध एवं विकास विंग के कर्नल गोनोचा और डॉ. सेलवराज ने भी साबित किया
है कि हवन में शामिल लोगों के नशे की लत भी दूर की जा सकती है। मन-मस्तिष्क में
सकारात्मक भाव और विचारों का प्रादुर्भाव होता है[3]।मानसिक बीमारियों के इलाज में भी हवन के सकारात्मक असर पाये
गये हैं[7],[12]।
अब तो कृषि वैज्ञानिक भी अपने
शोधों के माध्यम से यह साबित करने में कामयाब हुये हैं कि हवन से सेहत और वातावरण
के साथ-साथ कृषि की उपज को भी बढ़ाया जा सकता है[3],[8]।पूना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ.
भुजबल का कहना है, “अग्निहोत्र देने से जैविक खेती की उपज
बढ़ने के भी प्रमाण मिले हैं”।
मनुष्य को दी जाने वाली तमाम
तरह की दवाओं की तुलना में औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुयें से कई
रोगों में ज्यादा फायदा होता है और इससे कुछ नुकसान नहीं होता जबकि दवाओं का कुछ न
कुछ दुष्प्रभाव जरूर होता है।धुआं मनुष्य के शरीर में सीधे असरकारी होता है और यह
पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है[8]। अरोमाथेरेपी में भी इस धुयें वाली पद्धति का इस्तेमाल
होता है। अरोमाथेरेपी के जानकार बियोलॉजिस्टों का कहना है कि “सुगंध का मनुष्य पर जो
भावनात्मक, मानसिक और शारिरिक असर होता है, उसका कोई विकल्प नहीं होता[9]।
Note:- अयुर्वेद के एक आर्चाया श्री संत्कुमार ने हवन द्वारा कोरोना के इलाज का भी दावा किया है। जिनका वीडियो मैंने अपने इस आर्टिकल के अंत में शामिल किया है, आप लोग भी वो वीडियो इस आर्टिकल के अंत में जा कर देख सक्ते हैं। लेकिन चूँकि मेरा खुद का रिसर्च “कोरोना के ‘इलाज’ के रुप में हवन का उपयोग” पर नहीं है। मैं अपनी ओर से उस वीडियो पर कोइ टिप्पणी नहीं कर सक्ता।
कुछ व्यवहारिक
विचार–
अगर आपके विचारों में आध्यात्मिक तत्वों
का कोई महत्व न हो तो भी अपना और अपने घर के स्वास्थ् के दृष्टिकोण से तो इसे अपना
ही सकते हैं। कोरोना से बचाव के उपायों में इसे शामिल कर सकते हैं (यहाँ ये भी स्पष्ट
करना महत्वपूर्ण है कि ये कोई इलाज नहीं सिर्फ बचाओ के उपायों में से एक है)। प्रतिदिन
हवन नहीं कर सकते तो बाजार में उपलब्ध धूप(हवन वाला) ही जला
लीजिये। अच्छे नतीजे के लिये उस धूप में गूगल, लोबान के साथ “नीम के पेड़ का सूखा छाल”
सम्मिलित कर लीजिये। इतना भी नहीं कर सकते तो “नीम के तेल में डुबाया हुआ कपूर” ही
जला लिया करें। और अगर समय की कमी या किसी दूसरे कारणों से पूजा नहीं कर सकते पर आध्यात्मिक
फल भी पाना चाहते हैं, तो ऊपर बताये गये
तरीके के धूप या कपूरको अपने “संध्या आरती” के आदतों में शामिल कर लीजिये।
आईये हम भी ऋषि मुनियों के
प्राचीन विज्ञान को अपनाये।
References :-
[1] PANCHGAVYA THERAPY (COWPATHY) IN SAFEGUARDING
HEALTH OF ANIMALS AND HUMANS – A REVIEW.
[2] TOI
(August 17, 2009)
[3] यज्ञ
/हवन के लाभ:समिधा,होम द्रव्य,सामान्य हवन सामग्री
[4] ANTIFUNGAL EFFICACY OF PANCHAGAVYA
[5]Medicinal smoke reduces air bronze bacteria
[6] Scientific reasons behind the Hindu
ritual ‘Yagya’
[7] Is There Any Scientific Basis of Hawan to be used in
Epilepsy-Prevention/Cure?
[8] विकिपीडिया
[9] Effect
of fragrance inhalation on sympathetic activity in normal adults
[10]ANTIVIRAL EFFECT OF AQUEOUS NEEM
EXTRACT FROM BRANCHES OF NEEM TREE ON NEWCASTLE DISEASE VIRUS
[11] Panchgavya: Immune-enhancing and
Therapeutic Perspectives
[12] Was Hawan Designed to Fight
Anxiety-Scientific Evidences?
आर्चाय संत्कुमार का वीडियो
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