राजनीति के अत्यल्प खिलाड़ी, क्या आगामी बिहार चुनाव में पड़ेंगे भारी ?
भारतीय राजनीति में बिहार की राजनीति का अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव, इसी साल आपेक्षित है। 21/10/2020 से 20/11/2020 के बीच 6 चरणों में कुल 243 सीटों पर चुनाव होने की बात है। जिस कारण अटकलों का बाजार गर्म है। मीडिया के आंकड़ों में सरकारें बनने और गिरने लगी हैं। हमारी टीम ने भी इस बाबत कुछ आम, कुछ खास लोगों के राय अनुसार एक “अभी तक का आकलन” तैयार किया है, जिसकी बानगी मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ।
पिछले बार की तरह इस बार भी मुख्य टक्कर नीतीश-बीजेपी की एन.डी.ए और दूसरी ओर आर.जे.डी की अग्रवानी वाली महागठबंधन के बीच होगी। पर इस साल की स्थिति पूर्व चुनावों से काफी भीन्न है। एक ओर जहाँ विपक्ष (महागठबंधन) नेतृत्वहीन है और एकजुटता और नेतृत्व के मुद्दे पर महागठबंधन में शून्यता है।इस बार महागठबंधन, नीतीश कुमार को कोई ठोस टक्कर दे सके, ऐसी संभावना निम्न है। (निकट भविष्य में इसमें सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिख रही) वहीं दूसरी ओर जनसंख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग नीतीश कुमार से छुटकारा की चाह रखता है। जिसका प्रमुख कारण; बिहार में हुए चमकी बुखार के प्रकोप के दौरान, वर्तमान कोरोना महामारी में बिहारी मज़दूरों की घर वापसी के दौरान और वर्तमान में कोरोना संकट से जूझने में सरकारी प्रयासों में नीतीश सरकार की अस्पष्ट, ढुलमुल और नकारात्मक रवैये को लेकर है; बिहार में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार की “विकाश पुरुष” की छवि दागदार हुई है। चाहे वर्तमान कोरोना संकट में सरकारी प्रयासों का मुद्दा हो या फिर बिहार में चल रहे बिहार सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का मुद्दा, धरातल की स्थिति नीतीश सरकार द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों से मेल नहीं खाते।
हालांकि नीतीश कुमार की जे.डी.यू ने “बूथ लेवल मैनेजमेंट” तक कि तैयारी रखी है, परंतु, कहीं! अभी तक बिहार राजनीति में अत्यल्प खिलाड़ी समझे जाने वाले लोग कोई बड़ा उलटफेर न कर दें! इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
ये खिलाड़ी कौन-कौन हो सकते हैं, इसकी चर्चा करते है।
- उपेंद्र कुशवाहा (आर.एल.एस.पी प्रमुख) 2018 दिसंबर में सीट बंटवारे को ले कर एन.डी.ए से अलग हुए। 2019 लोकसभा में बिहार के दो संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ा। दोनों पर हारे। कोइरी जाती से हैं, जिनकी जनसंख्या बिहार में 8% है। जातिगत वोटों पर इनकी पकड़ कही जा सकती है।
- पप्पू यादव (जन अधिकार पार्टी, प्रमुख) संभावना है कि ये अपने बूते ही चुनाव लड़ेंगे क्योंकि इनकी नजदीकियां न महागठबंधन से है न ही एन.डी.ए से। 2019 लोकसभा चुनाव में इन्होंने शरद यादव को हराया था।
- मुकेश सहनी : बॉलीवुड रिटर्न मुकेश सहनी ने 2014 लोकसभा और 2015 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिये कैंपेनिंग की थी। 2019 लोकसभा चुनाव के पहले “विकाशील इंसान पार्टी” नामक अपनी पार्टी बनाकर महागठबंधन में शामिल हुए। इनकी पार्टी 3 सीटों पर लड़ी। तीनों में हारे। मल्लाह जाती से आते हैं और आमतौर पर “मल्लाह पुत्र” नाम से भी जाने जाते हैं।
- जीतन राम मांझी(हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक सदस्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष) बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार से अलग हो कर पार्टी बनाया। 2018 में महागठबंधन में शामिल हुए। 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। 04/09/2020 को वापस एन.डी.ए में चले गये।
- ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी) 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार “एक” सीट जीता था। बिहार में मुस्लिम जनसंख्या 16.9% है।
- प्रशांत किशोर(पी.के) चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बने पी.के, नीतीश कुमार से अलग होने के बाद, बिहार की राजनीति में नये-नये प्रयोग करते आ रहे हैं। हालांकि वो खुद अभी तक खुल कर पर्दे पर नहीं आये हैं पर उनकी महत्वकांक्षा और उनके प्रयोग दोनों ही बिहार की जनता की निगाहों से छुपे नहीं हैं। हालांकि, धारा 370 हटाने जैसे राष्ट्रवादी मुद्दों पर उनके नकारात्मक टिप्पणी और प्रियंका गांधी वाड्रा से उनकी तथाकथित नज़दीकी की उनकी व्यक्तिगत छवि उनके विस्तार और उनके स्वीकारता को अस्वीकार्य बनाती हैं। पर प्रचार के माध्यम से उलटफेर कर सकने में क्षमतावान हैं। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि चुनावी रणनीतिकार के रूप में उनकी क्षमता का प्रदर्शन पूरा देश देख चुका है। हालांकि मेरी व्यक्तिगत आंकलन में उनकी नज़र इस चुनाव में न हो कर अगले चुनाव पर है।
- चिराग पासवान (श्री रामविलास पासवान के पुत्र; अध्यक्ष केंद्रीय संसदीय बोर्ड, लोक जनशक्ति पार्टी व संसद सदस्य लोकसभा जमुई) बिहार के सभी सीटों पर अपने प्रत्यासी उतारने की इच्छा प्रगट कर फिलहाल लाइम लाइट में हैं। एक ओर जहाँ आगामी विधानसभा चुनाव के लिये लोक जनशक्ति पार्टी 143 उम्मीदवारों की सूची संसदीय बोर्ड को देने का मन बना चुकी है वहीं दूसरी तरफ चिराग, बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। बीच में उन्होंने “बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर न लड़ कर, प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ने का” सुझाव भी दिया था। लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन जे.डी.यू के साथ जारी रहेगा कि नहीं, इसका फैसला करने का अधिकार भी लोजपा ने चिराग पासवान को दिया हुआ है। सनद रहे कि अपने पुत्र चिराग पासवान के सुझाव पर ही श्री रामविलास पासवान ने 2019 चुनाव में लोजपा का गठबंधन एन.डी.ए से कराया था। मेरी राय में, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चिराग पासवान की इस ज्यादा सीटों की मांग को बीजेपी शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त हो। क्योंकि बिहार एन.डी.ए में वही एक चेहरा है जो बिहार बीजेपी को नीतीश कुमार के प्रभाव से बाहर ला सके।
अंत में ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकने में सक्षम दिख रही है। हाँ! उसका रूप कैसा होगा, ये अभी बता पाना जल्दीबाजी होगा।
भारतीय राजनीति में बिहार की राजनीति का अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव, इसी साल आपेक्षित है। 21/10/2020 से 20/11/2020 के बीच 6 चरणों में कुल 243 सीटों पर चुनाव होने की बात है। जिस कारण अटकलों का बाजार गर्म है। मीडिया के आंकड़ों में सरकारें बनने और गिरने लगी हैं। हमारी टीम ने भी इस बाबत कुछ आम, कुछ खास लोगों के राय अनुसार एक “अभी तक का आकलन” तैयार किया है, जिसकी बानगी मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ।
पिछले बार की तरह इस बार भी मुख्य टक्कर नीतीश-बीजेपी की एन.डी.ए और दूसरी ओर आर.जे.डी की अग्रवानी वाली महागठबंधन के बीच होगी। पर इस साल की स्थिति पूर्व चुनावों से काफी भीन्न है। एक ओर जहाँ विपक्ष (महागठबंधन) नेतृत्वहीन है और एकजुटता और नेतृत्व के मुद्दे पर महागठबंधन में शून्यता है।इस बार महागठबंधन, नीतीश कुमार को कोई ठोस टक्कर दे सके, ऐसी संभावना निम्न है। (निकट भविष्य में इसमें सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिख रही) वहीं दूसरी ओर जनसंख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग नीतीश कुमार से छुटकारा की चाह रखता है। जिसका प्रमुख कारण; बिहार में हुए चमकी बुखार के प्रकोप के दौरान, वर्तमान कोरोना महामारी में बिहारी मज़दूरों की घर वापसी के दौरान और वर्तमान में कोरोना संकट से जूझने में सरकारी प्रयासों में नीतीश सरकार की अस्पष्ट, ढुलमुल और नकारात्मक रवैये को लेकर है; बिहार में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार की “विकाश पुरुष” की छवि दागदार हुई है। चाहे वर्तमान कोरोना संकट में सरकारी प्रयासों का मुद्दा हो या फिर बिहार में चल रहे बिहार सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का मुद्दा, धरातल की स्थिति नीतीश सरकार द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों से मेल नहीं खाते।
हालांकि नीतीश कुमार की जे.डी.यू ने “बूथ लेवल मैनेजमेंट” तक कि तैयारी रखी है, परंतु, कहीं! अभी तक बिहार राजनीति में अत्यल्प खिलाड़ी समझे जाने वाले लोग कोई बड़ा उलटफेर न कर दें! इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
ये खिलाड़ी कौन-कौन हो सकते हैं, इसकी चर्चा करते है।
- उपेंद्र कुशवाहा (आर.एल.एस.पी प्रमुख) 2018 दिसंबर में सीट बंटवारे को ले कर एन.डी.ए से अलग हुए। 2019 लोकसभा में बिहार के दो संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ा। दोनों पर हारे। कोइरी जाती से हैं, जिनकी जनसंख्या बिहार में 8% है। जातिगत वोटों पर इनकी पकड़ कही जा सकती है।
- पप्पू यादव (जन अधिकार पार्टी, प्रमुख) संभावना है कि ये अपने बूते ही चुनाव लड़ेंगे क्योंकि इनकी नजदीकियां न महागठबंधन से है न ही एन.डी.ए से। 2019 लोकसभा चुनाव में इन्होंने शरद यादव को हराया था।
- मुकेश सहनी : बॉलीवुड रिटर्न मुकेश सहनी ने 2014 लोकसभा और 2015 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिये कैंपेनिंग की थी। 2019 लोकसभा चुनाव के पहले “विकाशील इंसान पार्टी” नामक अपनी पार्टी बनाकर महागठबंधन में शामिल हुए। इनकी पार्टी 3 सीटों पर लड़ी। तीनों में हारे। मल्लाह जाती से आते हैं और आमतौर पर “मल्लाह पुत्र” नाम से भी जाने जाते हैं।
- जीतन राम मांझी(हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक सदस्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष) बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार से अलग हो कर पार्टी बनाया। 2018 में महागठबंधन में शामिल हुए। 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। 04/09/2020 को वापस एन.डी.ए में चले गये।
- ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी) 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार “एक” सीट जीता था। बिहार में मुस्लिम जनसंख्या 16.9% है।
- प्रशांत किशोर(पी.के) चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बने पी.के, नीतीश कुमार से अलग होने के बाद, बिहार की राजनीति में नये-नये प्रयोग करते आ रहे हैं। हालांकि वो खुद अभी तक खुल कर पर्दे पर नहीं आये हैं पर उनकी महत्वकांक्षा और उनके प्रयोग दोनों ही बिहार की जनता की निगाहों से छुपे नहीं हैं। हालांकि, धारा 370 हटाने जैसे राष्ट्रवादी मुद्दों पर उनके नकारात्मक टिप्पणी और प्रियंका गांधी वाड्रा से उनकी तथाकथित नज़दीकी की उनकी व्यक्तिगत छवि उनके विस्तार और उनके स्वीकारता को अस्वीकार्य बनाती हैं। पर प्रचार के माध्यम से उलटफेर कर सकने में क्षमतावान हैं। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि चुनावी रणनीतिकार के रूप में उनकी क्षमता का प्रदर्शन पूरा देश देख चुका है। हालांकि मेरी व्यक्तिगत आंकलन में उनकी नज़र इस चुनाव में न हो कर अगले चुनाव पर है।
- चिराग पासवान (श्री रामविलास पासवान के पुत्र; अध्यक्ष केंद्रीय संसदीय बोर्ड, लोक जनशक्ति पार्टी व संसद सदस्य लोकसभा जमुई) बिहार के सभी सीटों पर अपने प्रत्यासी उतारने की इच्छा प्रगट कर फिलहाल लाइम लाइट में हैं। एक ओर जहाँ आगामी विधानसभा चुनाव के लिये लोक जनशक्ति पार्टी 143 उम्मीदवारों की सूची संसदीय बोर्ड को देने का मन बना चुकी है वहीं दूसरी तरफ चिराग, बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। बीच में उन्होंने “बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर न लड़ कर, प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ने का” सुझाव भी दिया था। लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन जे.डी.यू के साथ जारी रहेगा कि नहीं, इसका फैसला करने का अधिकार भी लोजपा ने चिराग पासवान को दिया हुआ है। सनद रहे कि अपने पुत्र चिराग पासवान के सुझाव पर ही श्री रामविलास पासवान ने 2019 चुनाव में लोजपा का गठबंधन एन.डी.ए से कराया था। मेरी राय में, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चिराग पासवान की इस ज्यादा सीटों की मांग को बीजेपी शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त हो। क्योंकि बिहार एन.डी.ए में वही एक चेहरा है जो बिहार बीजेपी को नीतीश कुमार के प्रभाव से बाहर ला सके।
अंत में ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकने में सक्षम दिख रही है। हाँ! उसका रूप कैसा होगा, ये अभी बता पाना जल्दीबाजी होगा।
Post a Comment