"राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और बिहार", बिहार यंग थिंकर्स फोरम द्वारा वेब गोष्ठी का आयोजन
प्रथम वक्ता के तौर पर डॉ मनीषा प्रियम ने अपनी बात कहते हुए यह कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बदलते समय के अनुसार एक सही कदम है एवं इसके दूरगामी परिणाम भविष्य में वृहद तरीके से सामने आएंगे। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समाज के सभी पक्षों को शिक्षित करने के उद्देश्य से, एक अच्छे एवं न्याय पूर्ण समाज के विकास हेतु एवं राष्ट्र निर्माण हेतु एक सही कदम बताया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिहार के परिपेक्ष में बात करते हुए उन्होंने श्री कर्पूरी ठाकुर जी को याद किया जिन्होंने सर्वप्रथम मातृभाषा में बच्चों को शिक्षित करने की वकालत की थी। उन्होंने साथ में ही है अभी बताया की बिहार में बच्चों की एक बड़ी संख्या को अति शीघ्र द्रुतगामी तरीके से शिक्षा जगत में शामिल करने की जरूरत है एवं राज्य का विकास इसी पर आधारित होगा। इतिहास की बात करते हुए उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी कि ब्रिटिश साम्राज्य ने बिहार के क्रांतिकारियों के डर से भोजपुरी भाषा में शिक्षा ना देने का फरमान जारी किया था एवं भोजपुरी भाषा में लिखी किताबों को स्कूली शिक्षा से हटा दिया था। पटना विश्वविद्यालय को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग करते हुए उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि यह एक ऐतिहासिक विश्वविद्यालय है एवं विभिन्न विभागों की उपस्थिति होने के कारण यह केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने का एक प्रबल दावेदार भी है। पटना विश्वविद्यालय को अति शीघ्र आधुनिकरण करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के दूसरे वक्ता श्री मकरंद परांजपे ने बिहार के विश्वविद्यालयों का इतिहास बताते हुए कहा कि यहां के विद्यार्थी ने शिक्षण जगत में काफी नाम कमाया है। बिहार एवं बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इन दोनों राज्यों में राजनीतिक गतिविधियों के दखलदाजी के कारण छात्रों ने दूसरे राज्यों की तरफ रुख कर लिया। विश्वविद्यालयों की कुछ कमियों को उजागर करते हुए उन्होंने कहा की वर्तमान में किसी भी विश्वविद्यालय में विभिन्न हित धारकों का आपसी गतिरोध अच्छे से अच्छे संस्था को ले डूबता है। नई शिक्षा नीति पर अधिक प्रकाश डालते हुए उन्होंने शिक्षा के निजीकरण पर चिंता जाहिर की एवं इस बात पर बल दिया कि किसी भी राष्ट्र का विकास बिना शिक्षा को शुद्ध किए हुए संभव नहीं है।
कार्यक्रम के तीसरे वक्ता श्री प्रफुल्ल केतकर जी ने नई शिक्षा नीति को एक स्वागत योग्य कदम कहा। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति के कई आयाम महात्मा गांधी के नई तालीम सोच से लिए गए हैं। प्रमुख रूप से इसमें बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बचपन में शिक्षा को मातृभाषा में देने का सुझाव है।अ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के साथ-साथ राज्य शिक्षा आयोग को भी वृहत तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उन्होंने देश के संस्कृति एवं गौरव से जोड़ने वाला बताया।
बिहार यंग थिंकर्स फोरम ने 4 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं बिहार के परिपेक्ष में इसके मायने के विषय पर एक वेब गोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के तौर पर डॉ मनीषा प्रियम, डॉक्टर मकरंद परांजपे एवं श्री प्रफुल्ल केतकर जी शामिल हुए।
प्रथम वक्ता के तौर पर डॉ मनीषा प्रियम ने अपनी बात कहते हुए यह कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बदलते समय के अनुसार एक सही कदम है एवं इसके दूरगामी परिणाम भविष्य में वृहद तरीके से सामने आएंगे। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समाज के सभी पक्षों को शिक्षित करने के उद्देश्य से, एक अच्छे एवं न्याय पूर्ण समाज के विकास हेतु एवं राष्ट्र निर्माण हेतु एक सही कदम बताया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिहार के परिपेक्ष में बात करते हुए उन्होंने श्री कर्पूरी ठाकुर जी को याद किया जिन्होंने सर्वप्रथम मातृभाषा में बच्चों को शिक्षित करने की वकालत की थी। उन्होंने साथ में ही है अभी बताया की बिहार में बच्चों की एक बड़ी संख्या को अति शीघ्र द्रुतगामी तरीके से शिक्षा जगत में शामिल करने की जरूरत है एवं राज्य का विकास इसी पर आधारित होगा। इतिहास की बात करते हुए उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी कि ब्रिटिश साम्राज्य ने बिहार के क्रांतिकारियों के डर से भोजपुरी भाषा में शिक्षा ना देने का फरमान जारी किया था एवं भोजपुरी भाषा में लिखी किताबों को स्कूली शिक्षा से हटा दिया था। पटना विश्वविद्यालय को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग करते हुए उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि यह एक ऐतिहासिक विश्वविद्यालय है एवं विभिन्न विभागों की उपस्थिति होने के कारण यह केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने का एक प्रबल दावेदार भी है। पटना विश्वविद्यालय को अति शीघ्र आधुनिकरण करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के दूसरे वक्ता श्री मकरंद परांजपे ने बिहार के विश्वविद्यालयों का इतिहास बताते हुए कहा कि यहां के विद्यार्थी ने शिक्षण जगत में काफी नाम कमाया है। बिहार एवं बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इन दोनों राज्यों में राजनीतिक गतिविधियों के दखलदाजी के कारण छात्रों ने दूसरे राज्यों की तरफ रुख कर लिया। विश्वविद्यालयों की कुछ कमियों को उजागर करते हुए उन्होंने कहा की वर्तमान में किसी भी विश्वविद्यालय में विभिन्न हित धारकों का आपसी गतिरोध अच्छे से अच्छे संस्था को ले डूबता है। नई शिक्षा नीति पर अधिक प्रकाश डालते हुए उन्होंने शिक्षा के निजीकरण पर चिंता जाहिर की एवं इस बात पर बल दिया कि किसी भी राष्ट्र का विकास बिना शिक्षा को शुद्ध किए हुए संभव नहीं है।
कार्यक्रम के तीसरे वक्ता श्री प्रफुल्ल केतकर जी ने नई शिक्षा नीति को एक स्वागत योग्य कदम कहा। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति के कई आयाम महात्मा गांधी के नई तालीम सोच से लिए गए हैं। प्रमुख रूप से इसमें बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बचपन में शिक्षा को मातृभाषा में देने का सुझाव है।अ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के साथ-साथ राज्य शिक्षा आयोग को भी वृहत तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उन्होंने देश के संस्कृति एवं गौरव से जोड़ने वाला बताया।
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